गांव कनेक्शन के महफिल सेक्शन में आज सुनिए गीतकार और किस्सागो नीलेश मिसरा की एक कविता उन्हीं की आवाज। यादों की पहेली को कुछ इस तरह सुलझाओ, बूझो तो बूझ जाओ. वर्ना भूलते जाओ। नीलेश मिसरा की आवाज में उनकी कहानियां, कविताएं गांव कनेक्शन के महफिल सेक्शन और नीलेश मिसरा के यूट्यूूब चैनल पर उपलब्ध हैं।
यादों की पहली पूरी कविता पढ़ें-
यादों की पहेली को
कुछ इस तरह सुलझाओ
बूझो तो बूझ जाओ
वरना भुलाते जाओ
तुमने भुला दिया है
इतना यकीन है पर
मैंने भुला दिया है
इसका यकीं दिलाओ
मुझे छोड़ के गए तुम
सब ले गए थे क्यूँ तुम
इतना रहम तो कर दो
इक घाव छोड़ जाओ
कुछ नफरतें पड़ी हैं
कहीं पे तुम्हारे घर में
मेरा है वो सामां तुम
वापस मुझे दे जाओ
मेरा ग़म का खज़ाना है
तेरे पास मुस्कराहट
अपना जो है ले जाओ
मेरा जो है दे जाओ